उन बूढ़ी आंखों की झुर्रियां आज मुझे साफ़ दिख रही थीं! उन बूढ़ी आंखों की झुर्रियां आज मुझे साफ़ दिख रही थीं!
बेटे ! अब तुम हमको भूल गए! पता नहीं किस दुनियाँ में यूँ तुम उलझ गए !! मुड़ के भ बेटे ! अब तुम हमको भूल गए! पता नहीं किस दुनियाँ में यूँ तुम उलझ गए !...
ज्यादा कुछ नहीं मांगती मैं तुमसे, कुछ पल और बस संग रहना चाहती हूँ। ज्यादा कुछ नहीं मांगती मैं तुमसे, कुछ पल और बस संग रहना चाहती हूँ।
मना कर रही पड़ी बेबस, रहने दो बेजान पड़ी बूढ़ी माँ यू बिलख रही है, लादे मेरा लाल कोई। मना कर रही पड़ी बेबस, रहने दो बेजान पड़ी बूढ़ी माँ यू बिलख रही है, लादे मेरा लाल...
कल मालिक ने उसे यहां बांधा था रात से कुछ खाया भी नहीं था कल मालिक ने उसे यहां बांधा था रात से कुछ खाया भी नहीं था
डर के ताले जिनके पीछे कैद हैं विश्वास और निश्चिंतता। डर के ताले जिनके पीछे कैद हैं विश्वास और निश्चिंतता।